Shankaracharya Temple, Srinagar शंकराचार्य मंदिर, श्रीनगर
इस बात से तो सब अवगत है कि भारत भूमि विभिन्न प्रकार के संस्कृतियों को समेटे हुए है। यहां के ऐतिहासिक धरोहर और बेमिसाल वास्तुकला वाले मंदिर, अलग-अलग कालखंड में भारत की एक अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। भारत में मंदिर हमेशा से ही पूजा, साधना और सामाजिक समारोह केंद्र के रूप में जाने जाते रहें है
शंकराचार्य मंदिर जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर में डल झील के पास शंकराचार्य पर्वत पर स्थित है।
- यह मंदिर समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
- शंकराचार्य मंदिर को तख़्त-ए-सुलेमन के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मंदिर कश्मीर स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
- इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादात्य ने 371 ई. पूर्व में करवाया था।
- डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पँहुचने के लिए सीढ़ियाँ बनवाई थी।
- इस मंदिर की वास्तुकला भी काफ़ी ख़ूबसूरत है।
- जगदगुरु शंकराचार्य अपनी भारत यात्रा के दौरान यहाँ आये थे।
- उनका साधना स्थल आज भी यहाँ बना हुआ है।
- ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ से श्रीनगर और डल झील का बेहद ख़ूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
यह मंदिर श्रीनगर समुद्र तल से से करीब 1100 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है। मुख्य द्वार से मंदिर के सामने स्थित बाग तक पहुंचने के लिए 244 सीढ़ियां चढ़कर भक्त मंदिर के सामने पहुंचते हैं। मंदिर की सीढ़ियों पर फारसी भाषा में दो अभिलेख हैं, जिनके अनुसार इस मंदिर की स्थापना 1659 ईसवी में की गयी थी। दूसरे अभिलेख के अनुसार 1644 ईसवी और मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए और 36 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। ये 36 सीढियां, हिंदू दर्शन के अनुसार माना जाय तो, ब्रह्मांड को बनाने वाले 36 तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं। गर्भगृह में भगवान शिव का विशालाकाय लिंग स्थापित है। शंकराचार्य मंदिर,ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से इस मंदिर से श्रीनगर शहर और पूरे डल झील का भव्य नजारा दिखाई देता है। विशेष रूप से पीर पंजाल रेंज के बर्फ से ढके पहाड़ भी यहां से देखे जा सकते हैं।
शंकराचार्य मंदिर की वास्तुकला…
इस मंदिर के वास्तुकला में मुख्य रूप से कश्मीरी शैली नजर आता है। यह मंदिर पहाड़ के ठोस चट्टान पर बना हुआ है। एक अष्टकोणीय आधार जो 20 फीट ऊँचा है, वर्गाकार इमारत को सहारा देता है।अष्टकोण के हर एक भुजा की लंबाई 15 फीट है। गर्भगृह गोलाकार, छोटा और अंधेरा कमरा है, जहाँ विशालकाय शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के चारो ओर से कई स्तंभ बने है जो मंदिर और मंदिर के शिखर को सहारा देते है। मंदिर में कुछ फ़ारसी नक्काशी भी है, जो इसकी वास्तुकला को और अधिक लोकप्रिय बनाती है।
शंकराचार्य मंदिर का इतिहास…
ऐतिहासिक संदर्भ मे बात करे तो यह मंदिर कश्मीर का सबसे पुराना मंदिर है। यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है उसकी उत्पति पर्मियन युग में ज्वालामुखी गतिविधि द्वारा हुई है। इस पहाड़ी को समय समय पर बहुत से नाम से दिए गए है जैसे संधिमाना-पर्वत, कोह-ए-सुलेमान, तख्त-ए-सुलेमान या तख्त हिल, गोपाद्रि या गोपा हिल आदि।कल्हण के राजतरंगिनी में इस पहाड़ी का सबसे पहले उल्लेख मिलता है। कल्हण द्वारा इस पर्वत को ‘गोपाद्रि’ कहा गया है। राजतरंगिनी में उल्लेख है कि राजा गोपादित्य ने “आर्यदेश” से आए ब्राह्मणों को पहाड़ी के नीचे की भूमि अनुदान में दी थी। आधार पर स्थित इस क्षेत्र को अब गुपकर कहा जाता है।
हालांकि इस मंदिर के निर्माण की स्पष्ट तारीख के बारे में किसी को भी पता नहीं है। इस मंदिर को कई बार आक्रमणकारियों और प्राकृतिक आपदाओं के हमले भी झेलने पड़े हैं। और अलग-अलग समय पर अलग-अलग शासकों द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाता रहा है। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण में कई राजाओं को योगदान रहा है।
माना जाता है कि (2629 से 2564 ईसा पूर्व तक हिंदू राजा सैंडिमन का कश्मीर मे राजकाल था और उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया था।
कल्हण के राजतरंगिनी में उल्लेख है कि राजा गोपादित्य ने 371 ई पूर्व के आसपास इस पहाड़ी की चोटी पर एक शिव मंदिर बनवाया था। इनके शासनकाल (426-365 ई पू) मे मंदिर मे मरम्मत भी होते रहा।
कुछ लोगो का मानना है कि इस मंदिर को 200 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र जलुका द्वारा बनवाया गया था। इसी कारण बौद्ध धर्म मे भी इस मंदिर का विशेष महत्व है।
प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फज़ल ने उल्लेख किया है कि काराकोट राजवंश के राजा ललितादित्य के शासनकाल (697-734 ) के बीच भी मंदिर मे मरम्मत का काम हुआ।
माना जाता है कि 8वी शताब्दी मे जब आदि शंकराचार्य यहाँ आये थे, तब से इस मंदिर और पहाड़ी का नाम शंकराचार्य के नाम से जाना जाने लगा।
जानकारी मिलती है कि मंदिर की वर्तमान संरचना 9वीं शताब्दी की है तब वहाँ सिखों का शासनकाल था। मंदिर मे शिवलिंग भी इसी समय रखा गया था और तभी से मंदिर में नियमित प्रार्थनाओं और त्योहार समारोहों की शुरुआत हुई।
मंदिर की सीढ़ियों पर फारसी भाषा में लिखे दो अभिलेख हैं, जिनके अनुसार इस मंदिर की स्थापना 1659 ईसवी में की गयी थी। दूसरे अभिलेख के अनुसार 1644 ईसवी में शाहजहां ने मंदिर की छत और स्तंभ बनवाया था। इस मंदिर को यहूदी और फारसी समुदाय द्वारा बाग-ए-सुलेमान भी कहा जाता है।
गुलाब सिंह(1792-1857 ई) जो डोगरा राजवंश के थे ,उन्होंने इस मंदिर के परिसर में दुर्गा नाग मंदिर की ओर से पहाड़ी तक सीढियाँ बनवाई।
आधुनिक काल में (1925 ई) मैसूर के राजा ने मंदिर में बिजलीकरण का काम करवाया। 1961 में द्वारकापीठ के शंकराचार्य ने आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को स्थापित करने का काम किया।
शंकराचार्य मंदिर में दर्शन का समय….
वैसे कहे तो मन में बसे भगवान के दर्शन तो हम जब चाहे तब कर सकते है पर यदि आप शंकराचार्य मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहते है तो आपको मैं बता दूं मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और तभी से कार, ऑटो व अन्य वाहनों को अंदर जाने की अनुमति है। यह मंदिर सेना के संरक्षण में है और इसलिए प्रवेश द्वार पर सेना के जवानों का पहरा रहता है। शाम 5 बजे के बाद मंदिर के मुख्य द्वार तक वाहनों कि अनुमति बंद कर दी जाती है। लेकिन मंदिर रात के 8 बजे तक खुला मिलेगा।
शंकराचार्य मंदिर तक कैसे पहुंचे…
भारत के इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए अलग अलग शहरों से श्रीनगर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई,शिमला और दक्षिण भारत के कुछ बड़े शहरों से श्रीनगर के लिए सीधे फ्लाइट की सुविधा है।
यदि कोई train से आना चाहते है तो जम्मू या उधमपुर तक आ सकते है।जम्मू के लिए चेन्नई,दिल्ली, त्रिवेंद्रम और बेंगलुरु से सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। जम्मू पहुंचकर वहां से प्राइवेट टैक्सी या शेयर टैक्सी लेकर आप श्रीनगर तक जा सकते है।
श्रीनगर तक के लिए दिल्ली, पंजाब, हरियाणा,हिमाचल, उत्तराखंड के कई शहरों से बस सर्विस मौजूद है। Volvo, AC delux, normal delux जैसी किसी भी प्रकार के बस आप चुन सकते है। या फिर बस रूट के रोड से ही होते हुए आप अपने खुद के vehicle से भी srinagar जा सकते है।
श्रीनगर में होटल की सुविधा…
अगर बात करे की यहाँ आकर कहाँ रहे, तो श्रीनगर में या शंकराचार्य मंदिर के आसपास,हर तरह के रेट मे होटल मौजूद है। अपने बजट के अनुसार होटल ले सकते है।
ये थी जानकारी श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर की। ऐसे ही पर्यटन स्थलों की जानकारी के लिए आने वाले पोस्ट पढ़ते रहे।
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